इमरान खान से मिलते ही मौसम की तरह कश्मीर पर बदलता है ट्रंप का सुर

Singh Anchala
नयी दिल्ली। क्या कश्मीर पर अमेरिका के बयान को संजीदगी से लेने की जरूरत है। दरअसल जब कभी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इमरान खान से मिलते हैं तो उन्हें मध्यस्थता की बात याद आ जाती है।पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के साथ बैठक में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ व्यापार के साथ अन्य मुद्दों पर बातचीत कर रहे हैं। इसके साथ ही हम लोगों के बीच कश्मीर के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच तनाव के स्तर पर भी चर्चा हुई। अमेरिका दक्षिण एशिया के हालात पर करीब से नजर बनाए हुए है।

कश्मीर मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यह बेहतर होता कि भारत और पाकिस्तान दोनों मिलकर इस समस्या को सुलझा लेते। जहां तक अमेरिका का सवाल है वो दोनों पक्षों की सहमति पर आगे बढ़ सकता है। हम यह मानते हैं कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता पूरे विश्व की बेहतरी के लिए जरूरी है। यह प्रामाणिक तथ्य है कि दोनों देश परमाणु संपन्न हैं लिहाजा भारत और पाकिस्तान की जिम्मेदारी के साथ साथ विश्व की भी यह जिम्मेदारी है इन दोनों मुल्कों में तनाव न बढ़े।

ट्रंप से जब सवाल पूछा गया कि जब वो भारत दौरे पर जाएंगे तो पाकिस्तान की भी यात्रा करेंगे। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि फिलहाल तो इमरान खान के साथ बैठे हुए हैं। ट्रंप ने कहा कि उनके लिए दोनों मुल्कों का नजरिया मायने रखता है। लेकिन उनकी अपनी समझ यह है कि बेहतर रिश्ते न केवल भारत और पाकिस्तान के लिए जरूरी है, बल्कि पूरी दुनिया भी सौहार्दपूर्ण रिश्ता चाहती है।

अब सवाल यह है कि डोनाल्ड ट्रंप इस तरह का बयान क्यों देते हैं। इसके बारे में हर्ष वी पंत कहते हैं कि अमेरिका अपने हितों को सबसे पहले तरजीह देता है। अमेरिकी प्रशासन में चाहे वो डेमोक्रेट्स हों या रिपबल्किन उनके लिए भारत एक बड़ा बाजार है। अमेरिकी सामानों की खपत के लिए इस तरह का बाजार चाहिए। चीन के साथ अमेरिकी तनातनी जगजाहिर है और उसके लिए चीन का बाजार उपलब्ध नहीं है। लिहाजा वो भारत को खुश करने की बात करता रहता है। इसके साथ ही अफगानिस्तान में अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है और उसके लिए पाकिस्तान की जरूरत होती है और वो मुंह देखकर बाते करता है।

 

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