तीन तलाक पर चर्चा में रविशंकर बोले- सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी 345 मामले सामने आए

Kumari Mausami

लोकसभा में गुरुवार को तीन तलाक विधेयक पर चर्चा जारी है। कांग्रेस ने यूपीए के सभी सहयोगी दलों से कहा है कि तीन तलाक बिल का विरोध करें। एआईएमआईएम और तृणमूल भी इसके खिलाफ हैं। चर्चा की शुरुआत में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ मिलना चाहिए। सीजेआई ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताते हुए कानून बनाने के लिए कहा था। कोर्ट के फैसले के बाद भी देश में तीन तलाक के 345 मामले सामने आए।''



मोदी सरकार-2 के दूसरे कार्यकाल में संसद के पहले सत्र में 21 जून को सबसे पहला विधेयक तीन तलाक पर ही पेश किया था। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने बिल पेश करने को लेकर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद वोटिंग कराई गई।



रविशंकर ने कहा, ''इसी सरकार ने भारत की बेटियों को फाइटर पायलट बनाया। आज वे चंद्रयान मिशन तक को लीड कर रही हैं। आज सदन में 78 महिलाएं चुनकर आई हैं। इस बार मेरा भी सौभाग्य है कि मैं भी पहली बार पटना से लोकसभा का सदस्य बना हूं। इस बार सदन की आवाज खामोश नहीं रहेगी। तीन तलाक को सियासी चश्मे से न देखा जाए। यह नारी के न्याय और गरिमा का मामला है। दुनिया के 20 इस्लामिक देशों ने तीन तलाक को बदला है।''



कांग्रेस ने महिला सशक्तिकरण के दो मौके गंवाए, यह बिल उनके लिए मौका: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून को बजट सत्र में धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा के जवाब में कांग्रेस से तीन तलाक बिल पर समर्थन की अपील की थी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस महिला सशक्तिकरण के दो मौके पहले ही गंवा चुकी है। तीन तलाक बिल उनके लिए तीसरा मौका है। 1950 के दशक में समान नागरिक संहिता का मौका आया था। लेकिन, तब कांग्रेस चूक गई और ‘हिन्दू कोड’ विधेयक ले आई। इसके 35 साल बाद शाहबानो वाले मामले में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने का मौका आया था, तब भी कांग्रेस चूक गई। लेकिन अब इसे (तीन तलाक) किसी धर्म, संप्रदाय से जोड़कर देखने की जरूरत नहीं है।



तीन तलाक पर नया विधेयक क्यों लाना पड़ा?

संसदीय नियमों के मुताबिक, जो विधेयक सीधे राज्यसभा में पेश किए जाते हैं, वो लोकसभा भंग होने की स्थिति में स्वत: समाप्त नहीं होते। जो विधेयक लोकसभा में पेश किए जाते हैं और राज्यसभा में लंबित रहते हैं, वे निचले सदन यानी लोकसभा भंग होने की स्थिति में अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। तीन तलाक बिल के साथ भी यही हुआ और इसी वजह से सरकार को नया विधेयक लाना पड़ रहा है।



फरवरी में लोकसभा में पास हो गया था बिल

लोकसभा में तीन तलाक पर कानूनी रोक वाला विधेयक फरवरी में पारित हो गया था। राज्यसभा में एनडीए सरकार के पास बहुमत नहीं था, इसलिए बिल वहां अटका रहा। अब सरकार बजट सत्र में इसे पेश करने और दोनों सदनों से पास कराने की उम्मीद कर रही है। अध्यादेश को भी कानून में तभी बदला जा सकता है जबकि संसद सत्र आरंभ होने के 45 दिन के भीतर उसे पास करा लिया जाए। अन्यथा अध्यादेश की अवधि समाप्त हो जाती है।



         नए विधेयक में ये हुए थे बदलाव

  • अध्यादेश के आधार पर तैयार नए बिल के मुताबिक, आरोपी को पुलिस जमानत नहीं दे सकेगी। मजिस्ट्रेट पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर जमानत दे सकते हैं। उन्हें पति-पत्नी के बीच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा।

  • बिल के मुताबिक, मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा। आरोपी को उसका भी गुजारा देना होगा। तीन तलाक का अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य एफआईआर दर्ज कराएं।


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